Wednesday, August 11, 2010

देवताओं की घाटी कुल्लू

हिमाचल प्रदेश में बसा एक खूबसूरत पर्यटन स्‍थल है कुल्‍लू। इसकी खूबसूरती और हरियाली पर्यटकों को हमेशा ही अपनी ओर खींचती आई है। कुल्‍लू घाटी का प्राचीन नाम कुलंथपीठ था। कुलंथपीठ का शाब्दिक अर्थ है रहने योग्‍य दुनिया का अंत। कुल्‍लू घाटी भारत में देवताओं की घाटी के नाम से जानी जाती है। ब्यास नदी के किनारे बसा यह स्‍थान अपने यहां मनाए जाने वाले रंग-बिरंगे दशहरे के लिए प्रसिद्ध है।
यहां 17वीं शताब्‍दी में निर्मित रघुनाथजी का मंदिर भी है जो हिंदुओं का प्रमुख तीर्थ स्‍थान है। सिल्‍वर वैली के नाम से मशहूर यह जगह केवल सांस्‍कृतिक और धार्मिक गतिविधियों के लिए ही नहीं बल्कि एडवेंचर स्‍पोर्ट के लिए भी प्रसिद्ध है। गर्मी के मौसम में कुल्‍लू सैलानियों का एक मनपसंद पर्यटन स्थल है। मैदानों में तपती धूप से बच कर लोग हिमाचल प्रदेश की कुल्‍लू घाटी में शरण लेते हैं। यहां के मंदिर, सेब के बागान और दशहरा हजारों पर्यटकों को कुल्‍लू की ओर आकर्षित करते हैं। यहां के स्‍थानीय हस्‍तशिल्‍प कुल्‍लू की सबसे बड़ी विशेषता है।

रघुनाथजी मंदिर
इस मंदिर का निर्माण राजा जगत सिंह ने 17वीं शताब्‍दी में करवाया था। कहा जाता है कि एक बार उनसे एक भयंकर भूल हो गई थी। उस गलती का प्रायश्चित करने के लिए उन्‍होंने इस मंदिर का निर्माण करवाया था। यहां श्री रघुना‍थजी अपने रथ पर विराजमान हैं। इस मंदिर में स्‍थापित रघुनाथजी की प्रतिमा राजा जगत सिंह ने अयोध्‍या से मंगवाई थी। आज भी इस मंदिर की शोभा देखते ही बनती है।

बिजली महादेव मंदिर
कुल्‍लू से 10 किमी. दूर ब्यास नदी के किनारे पहाड़ी के शिखर पर बना यह मंदिर यहां का प्रमुख धार्मिक स्‍थल है। मंदिर तक पहुंचने के लिए कठिन चढ़ाई चढ़नी होती है। यहां का मुख्‍य आकर्षण 10 मी. लंबी छड़ी है। इसे देखकर ऐसा ल्रगता है मानो यह सूरज को भेद रही हो। इस छड़ी के बारे में कहा जाता है बिजली कड़कने पर इसमें जो तरंगें उठती है वे भगवान का आशीर्वाद होता है। ऐसी मान्यता हैं कि जब भी पृथ्वी पर कोई दैवीय आपदा आने वाली होती है तो भगवान शिव उसको खुद पर झेल लेते हैं। जब बिजली गिरती है तो मंदिर में स्थापित शिवलिंग के टुकड़े-टुकड़े हो जाते हैं। शिवलिंग के टुकड़े पहाड़ी के चारों ओर बिखर जाते हैं। उसके बाद मंदिर के पुजारी को सपने में सभी टुकड़े कराहते हुए दिखाई पड़ते हैं। पुजारी सभी टुकड़ों को इकट्ठा करता है, इसके बाद मक्खन से सभी टुकड़ों को जोड़कर शिवलिंग तैयार किया जाता है। यहां सच्चे मन से मांगी मन्नत शिव जी जरूर पूरी करते हैं। इस मंदिर से कुल्‍लू और पार्वती घाटी का खूबसूरत नजारा देखा जा सकता है। हिमाचल में सबसे ज्यादा बादल फटने की घटना कुल्लू में ही होती है।

कुल्लू का दशहरा
कुल्‍लू का दशहरा पूरे देश में प्रसि‍द्ध है। इसकी खासियत है कि जब पूरे देश में दशहरा खत्‍म हो जाता है तब यहां शुरू होता है। देश के बाकी हिस्‍सों की तरह यहां दशहरा रावण, मेघनाथ और कुंभकर्ण के पुतलों का दहन करके नहीं मनाया जाता। सात दिनों तक चलने वाला यह उत्‍सव हिमाचल के लोगों की संस्‍कृति और धार्मिक आस्‍था का प्रतीक है। उत्‍सव के दौरान भगवान रघुनाथ जी की रथयात्रा निकाली जाती है। यहां के लोगों का मानना है कि करीब 1000 देवी-देवता इस अवसर पर पृथ्‍वी पर आकर इसमें शामिल होते हैं।

वॉटर और एडवेंचर स्‍पोर्ट
कुल्‍लू घाटी में कई जगहे हैं जहां मछली पकड़ने का आनंद उठाया जा सकता है। इन जगहों में रायसन, कसोल और नागर प्रमुख हैं। इसके साथ ही ब्यास नदी में वॉटर राफ्टिंग का मजा लिया जा सकता है। इन सबके अलावा यहां ट्रैकिंग भी की जा सकती है।

कुल्‍लू के आसपास दर्शनीय स्‍थल

नागर
यह स्‍थान करीब 1400 वर्षों तक कुल्‍लू की राजधानी रहा है। यहां 16वीं शताब्‍दी में बने पत्‍थर और लकड़ी के आलीशान महल आज होटलों में बदल चुके हैं। इन होटलों का संचालन हिमाचल पर्यटन निगम करता है। यहां रूसी चित्रकार निकोलस रोएरिक की एक चित्र दीर्घा है। इन सबके अलावा यहां विष्‍णु, त्रिपुरा सुंदरी और भगवान कृष्‍ण के प्राचीन मंदिर भी हैं।

जगतसुख
कुल्‍लू की सबसे प्राचीन राजधानी जगतसुख है। यह विज नदी के बायीं ओर नागर और मनाली के बीच स्थित है। यहां दो प्राचीन मंदिर हैं। पहला छोटा सा गौरी शंकर मंदिर और दूसरा संध्‍या देवी का मंदिर है।

देव टिब्‍बा
समुद्र तल से 2953 मी. की ऊंचाई पर स्थित इस जगह को इंद्रालिका के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि महर्षि वशिष्‍ठ ने अर्जुन को पशुपति अस्‍त्र पाने के लिए तप करने का परामर्श दिया था। इसी स्‍थान पर अर्जुन ने इंद्र से यह अस्‍त्र पाने के लिए तप किया था।

बंजार
यहां श्रृंग ऋषि का प्रसिद्ध मंदिर है। इन्‍हीं ऋषि की याद में यहां हर साल मई के महीने में एक उत्‍सव का आयोजन किया जाता है। यहां ठहरने के लिए पीडब्‍ल्‍यूडी का रेस्‍ट हाउस उपलब्‍ध है। कुछ दूरी पर ही जलोरी पास है जो बन्जार से सिर्फ 19 किलोमीट‍र दूर है जो गर्मियों में भी बर्फ की चादर से ढका रह्ता है। यहां से कुछ दू‍री प‍र सियोल्सर नाम की एक खूबसूरत झील है जो देवदार के हरे भरे जंगल से घिरी हुई है।

मणीकरन
यह स्‍थान कुल्‍लू से 43 किमी. दूर है। यह जगह गर्म पानी के झरने के लिए प्रसिद्ध है। हजारों लोग इस पवित्र गर्म पानी में डुबकी लगाते हैं। यहां का पानी इतना गर्म होता है कि इसमें दाल और सब्‍जी पकायी जा सकती हैं। यह हिंदुओं और सिक्‍खों का प्रसिद्ध धार्मिक स्‍थल है। यहां गुरुद्वारे के साथ रामचंद्र और शिवजी का प्राचीन मंदिर भी है।

कैसे जाएं कुल्लू
वायु मार्ग: नजदीकी हवाई अड्डा भुंतर कुल्‍लू से 10 किमी. दूर है। यहां के लिए दिल्‍ली से नियमित उड़ानें हैं। भुंतर से कुल्‍लू घाटी के लिए बस और टैक्सियां मिल जाती हैं।
रेल मार्ग: निकटतम रेलवे स्टेशन कालका, चंडीगढ़ और पठानकोट हैं जहां से कुल्‍लू सड़क के रास्‍ते पहुंचा जा सकता है।
सड़क मार्ग: कुल्‍लू दिल्‍ली, अंबाला, चंडीगढ़, शिमला, देहरादून, पठानकोट, धर्मशाला और डलहौजी समेत हिमाचल और देश के अन्‍य भागों से सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है। इन जगहों से कुल्‍लू के लिए नियमित रूप से बसें चलती हैं।