भारतीय पर्यटन स्थलों में कश्मीर जितना प्रसिद्ध है, लद्दाख उतना ही अनजान और रहस्यमय है। जम्मू-कश्मीर राज्य के तीन मुख्य भौगोलिक क्षेत्र हैं- जम्मू, कश्मीर और लद्दाख। इसके दो प्रमुख जिले हैं- करगिल एवं लेह। करगिल से सभी परिचित हैं, लेकिन लेह के बारे में बहुत कम जानकारी है लोगों को। बौद्ध धर्म एवं संस्कृति का प्रमुख केंद्र लेह हाल ही में 'सिंधु दर्शन' उत्सव के कारण चर्चा में आया है। लेह पर्यटकों के लिए स्वर्ग है। यह धार्मिक व्यक्तियों के लिए आध्यात्मिक ऊर्जा का केंद्र तथा खोजी व्यक्तियों के लिए अपार संभावना का केंद्र है। भारत, चीन तथा पाकिस्तान की सीमाओं की मिलन स्थली भी यहीं है। इसलिए सामरिक दृष्टि से यह संवेदनशील भी है।
कैसे पहुंचें लेह
लेह पहुंचने के दो प्रमुख सड़क मार्ग हैं, जो जून से अक्टूबर तक ही खुले रहते हैं। जम्मू-श्रीनगर-लेह राजमार्ग भारत की सामरिक महत्व की सड़क है। यह 625 किलोमीटर लंबी है। जम्मू से श्रीनगर, फिर सोनमर्ग, जोजिला दर्रा, द्रास, मश्कोह, बटालिक, करगिल, लामायुरू तथा निम्मू इस राजमार्ग के आसपास स्थित हैं। इस सड़क पर यात्रा करना ही अपने आप में एक यादगार अनुभव है। टेढ़ी-मेढ़ी सड़क, बर्फीले पर्वत, गहरी खाई, जोजिला दर्रा, कारगिल, सुरूवेली सब कुछ जन्नत का नजारा है। दूसरा मार्ग मनाली से लेह तक 473 किलोमीटर लंबा है। यह भी चार माह खुला रहने वाला रोमांचक मार्ग है। इस मार्ग पर रोहतांग व तकलांगला दर्रा आता है। आगे सरचू, कारू तथा लेह तक जाने वाला यह मार्ग सुंदरता से मंत्रमुग्ध कर देता है।
लेह पहुंचने के लिए इन मार्गों से तीन दिन का समय लगता है। दो रातें रास्ते में बितानी पड़ती हैं। हवाई यात्रा सुगम लेकिन मौसम की मर्जी पर निर्भर है। चंडीगढ़ से सप्ताह में एक दिन, जम्मू से दो दिन तथा दिल्ली से सप्ताह में पांच दिन विमान सेवा उपलब्ध है। पर्यटकों के लिए लेह यात्रा करने का उत्तम समय मध्य जून से अक्टूबर तक है। इस समय सड़क मार्ग भी चलते रहते हैं तथा तापमान 8 से 25 डिग्री सेल्सियस तक रहता है। सर्दियों में यहां का तापमान शून्य से 5 से 50 डिग्री नीचे तक पहुंच जाता है।
लेह का इतिहास
लेह कभी लद्दाखी नरेश तस्सेपल नाम्बियाल के कब्जे में था। जनरल जोरावरसिंह ने 1846 में इसे काश्मीर राज्य के अधीन मिलाया, तब से यह जम्मू-काश्मीर का भाग है। लेह का पश्चिमी क्षेत्र पाक सीमा से लगा है तथा यहीं सियाचिन ग्लेशियर है, जो जनसाधारण के लिए निषिद्ध क्षेत्र है। पूर्वी भाग चीन सीमा से लगा है। लद्दाख क्षेत्र बौद्ध लामाओं की साधना स्थली है। सालभर पर्वतीय शिखर बर्फ से ढके रहते हैं जबकि मैदानी भाग रेगिस्तान है। सुंदरता, रहस्य, धर्म एवं विचित्र शांति का यह क्षेत्र पर्यटकों को मोह लेता है।
लेह प्रसिद्ध भारतीय नदी सिंधु के किनारे है। इंडस या सिंधु नदी गर्मियों में इस क्षेत्र के सौंदर्य में चार चांद लगा देती हैं। सिंधु में आगे निम्मू घाटी में जान्सकार नदी आ मिलती है। इन दो नदियों के मिलन के सौंदर्य को शब्दों में बखान नहीं किया जा सकता।
बौद्ध मठ और महल
पर्यटकों के लिए इस क्षेत्र का मुख्य आकर्षण बौद्ध मठ तथा नाम्बियाल नरेशों तथा मठों के महल हैं। लेह से 70 किलोमीटर के अर्द्धव्यास का एक गोला बनाया जाए तो लद्दाख के सभी महत्वपूर्ण मठ व महल इसमें आ जाते हैं। लेह से 126 किलोमीटर दूरी पर लामायुरू नामक स्थल है। यह प्रसिद्ध बौद्ध मठ है। इसका मार्ग सिंधु-जान्सकार के किनारे-किनारे होकर जाता है।
लेह से लामायुरू मार्ग पर प्रसिद्ध व प्राचीन बौद्ध मठ आलची, लिकिर तथा फयांग आता है। ये सभी मठ दर्शनीय हैं। सिंधु का किनारा, पहाड़ों पर बने मठ, शरीर को चुभती ठंडक बहुत रोमांचक लगता है। इसी मार्ग पर प्रसिद्ध निम्मू घाटी तथा मैग्नेटिक हिल है। लेह से निम्मू घाटी मार्ग पर एक प्रसिद्ध गुरुद्वारा है- गुरुद्वारा 'पत्थर साहेब।'
यह गुरुद्वारा गुरु नानकदेवजी के चमत्कारिक व्यक्तित्व से जुड़ा है। सेना इसका संचालन करती है। यहां गुरु नानकदेवजी को नानकलामा के नाम से जाना जाता है। लेह-मनाली मार्ग पर एक जगह है कारू। यहां सिंधु नदी मैदानी भाग में आती है। इसी मार्ग पर शे महल तथा मठ, थिकसे मठ तथा सिंधु के दूसरे किनारे पर हेमिस मठ हैं। ये सभी मठ बहुत ही महत्वपूर्ण तथा लद्दाखी धार्मिक जीवन का आधार हैं। हेमिस व थिकसे मठ में भगवान बुद्ध की सुंदर मूर्तियां हैं। महल स्थानीय भवन कला के उत्तम उदाहरण हैं।
लेह के अन्य बौद्ध मठों में जापान द्वारा स्थापित शांति स्तूप, स्टाकना मठ, शंकर मठ, माशो तथा स्टोक मठ व पैलेस भी महत्वपूर्ण हैं। ये सभी लेह के आसपास हैं। स्टोक पैलेस में स्टाकना राजाओं की बहुमूल्य वस्तुओं का संग्रहालय भी है। लेह विमानतल के पास एक प्रसिद्ध मठ है 'स्पितुक मठ'। यह बौद्धों के साथ हिन्दुओं व सिखों की आस्था का भी केंद्र है। इस मठ के ऊपरी भाग में भगवती तारा का मंदिर है। मूर्ति सालभर कपड़े से ढंकी रहती है। सिर्फ जनवरी में दो दिन आवरण हटता है। माना जाता है कि तारा की आराधना भगवान बुद्ध करते थे। हिन्दुओं के लिए सिद्धपीठ काली का मंदिर है। लद्दाखी जनता के लिए यह देवी पालदन लामो है। लद्दाख के सभी मठ ध्यान, साधना, आध्यात्मिक शक्ति तथा शांति के केंद्र हैं। इन मठों की पूजा व पूजा प्रणाली रहस्यात्मक है। इन मठों की चित्रकारी व मनोहारी रंग पर्यटकों का मन मोह लेते हैं।